“4 कप टी” – लेखक अरविन्द सिंह

Author Aravind Singh

अगर आपको तलाश है किसी ऐसे किताब की जो आपको मोटिवेट करें, आपके सपनों को पंख दे और गिर कर उठना सिखाए तों आपको लेखक अरविन्द सिंह जी की यह “4 कप टी” किताब जरूर पढ़नी चाहिए। रमेश बाबू, इस किताब के मुख्य व दमदार पात्रों में से एक हैं, जो कि इस किताब की पूरी कहानी के आधारशिला हैं। रमेश बाबू नामक पात्र के जीवनी पर लिखी गई यह किताब वाकई में हमें कई महत्वपूर्ण प्रेरणा देती है हालांकि यह कहानी लेखन की कल्पनाओं पर आधारित है पर इसमें जिंदगी में आगे बढ़ने की व हतोत्साहित हुए मन में पुनः कुछ कर दिखाने की ऊर्जा को संग्रहित करने की उन तमाम कोशिशों को जिसे की अपने सपनों के प्रति एक हठी व्यक्ति को जो करना चाहिए और वो करता है फिर भले ही चाहे जिस हद तक संघर्ष करना पड़े कों वर्णित किया गया है।

इस किताब में रमेश बाबू एक ऐसे पात्र हैं जिन्होंने IAS बनने का सपना कुछ विशेष परिस्थितियों में अपनी आँखों में समा लिया लेकिन अपने सपनों को पूरा करने के लिए उन्होंने काफी संघर्षमय ज़िन्दगी देखी जिसमें उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं लेकिन फिर भी वे अपने लक्ष्य से भटकते नहीं हैं। रमेश बाबू अपने परिस्थितियों से समझौता न करते हुए अपने सपनों को साकार करने की राह बनाते हुए आगे बढ़ते हैं व उन तमाम विपत्तियों को पीछे छोड़ते हैं जिन्होंने उन्हें रोक रखा था और इन सब में उनकी मदद करने के लिए उनके सहयोगी व उनके छात्रावास के कई मित्र उनका साथ देते हैं और साथ में एक वार्डन सर हैं जिन्होंने रमेश बाबू की कठिन परिस्थितियों में उनका पूरा-पूरा सहयोग एक पिता की तरह किया है।

इस किताब में कहानी के हर पहलुओं को इतनी खूबसूरती से लिखा गया है कि इसके लिए लेखक को जितना सराहा जाए उतना कम है। एक अच्छी किताब लिखने के लिए लेखक को एक अच्छा श्रोता, अनुभवी, अभ्यासी, एकाग्रचित्त व नियमित लिखने के प्रति हठी होना चाहिए और यह किताब पढ़ने के बाद ऐसा प्रतीत हुआ कि यह सारी खूबियाँ इस किताब के लेखक के पास हैं। जिन्होंने इतने बढियाँ तरीके से यह किताब लिखी है कि इस किताब को पढ़ते समय ऐसा जान पड़ता है जैसे कि सारे पात्र जीवन्त तो हो उठते हैं, और मानो सारी घटनाएँ हमारे आँखों के सामने ही चल रही हैं। इस किताब को पढ़कर आप भी महसूस कर पाएंगे कि किताब के शुरू से लेकर अंत तक कहीं भी कोई भी कड़ी छूटनें नहीं पाई है जो कि लेखक के लेखनी की धैर्यता व सतर्कता को दर्शाती है। जिसे हम एक विशेष गुण के रूप में कुछ ही लेखको के अंदर देख पाते हैं। इस किताब में गद्द के साथ ही साथ पद्द रचनाओं को भी संकलित किया गया है जिसमें लेखक ने स्वयं को इस कहानी में सम्मिलित करके अपने द्वारा लिखी गई उन जोशपूर्ण व हृदय में साहस भरने वाली कविताओं को इस किताब का हिस्सा बनाया है, जिसे पढ़ कर किताब के मुख्य पात्र रमेश बाबू भी अपने आगे के जीवन में इन कविताओं से प्रेरणा लेते हुए अपने जीवन यात्रा पर चलने का निर्णय लेते हैं, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण व सबसे ज्यादा “4 कप टी” पर लिखी गई यह कविता हमें आकर्षित करती है-


कदाचित, आप कर्तव्य-पथ पर ही चलेंगे,
ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है।
पर मित्र, जब भी भटको तुम,
फिर याद उस चौथे कप चाय को करना।

आशा करता हूँ, याद रखोगे,
रात भर के मंथन को।
मैंने संजोए बहुमूल्य मोती,
मित्र, तुम भी कुछ संजोए ही होंगे।
जब भी भूलो कर्तव्य-पथ को,
याद उस चौथे कप चाय को रखना।

इस “4 कप टी” नामक किताब में रमेश बाबू से हमारी मुलाकात न केवल प्रेरणा के स्रोत के रूप में होती है बल्कि एक अच्छे प्रेमी, एक लायक बेटा, बेहतरीन छात्र, आत्मीय मित्र व उदार और ईमानदार व्यक्ति के रूप में भी होती है। एक परिवार में सामान्य तौर पर जो भी होता है वह सारी प्रक्रियाएँ व घटनाएँ तथा एक कैंपस में जहाँ के छात्र अपने सपनों को लेकर बहुत ही सतर्क हैं का पूरा दृश्य वर्णित किया गया है। सामान्य तौर पर एक नौजवान युवक या युवती किस प्रकार से एक-दूसरे की ओर आकर्षित होकर अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं व एक दूसरे की वजह से ही पुनः अपने लक्ष्य की ओर आते हैं, इस समय के भटकाव को व एकाग्रता को भी इस किताब में दर्शाया गया है। प्रेम में रूठना और मानना और फिर दूर हो जाना ये सारी घटनाएँ इस किताब को और आगे तक पढ़ने को मजबूर करती हैं, और फिर इसी क्रम में वह अंतिम मुलाकात अपनी प्रेमिका से इसके बाद शायद ही वह दोबारा मिलने वाले हैं, वह दृश्य हृदय छू जाता है।

किताब के अंत में हम देखते हैं कि रमेश बाबू नें जीवन के कई संघर्षों को पार करते हुए अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया है व अब वे एक IAS ऑफिसर भी बन चुके हैं, लेकिन रमेश बाबू के इस किरदार से हम सीखते हैं कि जीवन में चाहे जैसी भी परिस्थितियाँ आएं लेकिन हमें अपने आत्म सम्मान से समझौता कभी भी नहीं करना चाहिए और साथ ही साथ अपनी जिम्मेदारियों को भली-भांति समझ कर हमें आगे बढ़ना चाहिए। इस किताब में ऐसे जाने कितने ही पात्र हैं जो अपने होकर भी पराए हो गए और पराए भी अपने ऐसे बने की फिर वह अंत तक छूट न पाए।

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